कुम्भ मेला हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करते हैं।
इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष में इस पर्व का आयोजन होता ह.. और, मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है।
इसमें प्रयाग के संगम तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है... और, इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है... क्योंकि ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि.....राक्षसों और देवताओं में जब अमृत के लिए लड़ाई हो रही थी.... तब भगवान विष्णु ने एक 'मोहिनी' का रूप लिया और राक्षसों से अमृत को जब्त कर लिया... और, भगवान विष्णु ने गरुड़ को अमृत पारित कर दिया, तथा अंत में राक्षसों और गरुड़ के संघर्ष में कीमती अमृत की कुछ बूंदें इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गई।
तब से प्रत्येक 12 साल में इन सभी स्थानों में 'कुम्भ मेला' आयोजित किया जाता है।
----------------------कुम्भ का योग-----------------------------
कुम्भ बारह-बारह वर्ष के अन्तर से चार मुख्य तीर्थों में लगने वाला स्नान-दान का ग्रहयोग है। इसके चार स्थल प्रयाग, हरिद्वार, नासिक-पंचवटी और अवन्तिका (उज्जैन) हैं। कुम्भ योग ग्रहों की निम्न स्थिति के अनुसार बनता है-
जब सूर्य एवं चंद्र मकर राशि में होते हैं और अमावस्या होती है तथा मेष अथवा वृषभ के बृहस्पति होते हैं तो प्रयाग में कुम्भ महापर्व का योग होता है। इस अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों, सैकड़ों वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है। कुम्भ के इस अवसर पर तीर्थ यात्रियों को मुख्य दो लाभ होते हैं- गंगा स्नान तथा सन्त समागम।
जिस समय गुरु कुम्भ राशि पर और सूर्य मेष राशि पर हो, तब हरिद्वार में कुम्भ पर्व होता है।
जब गुरु सिंह राशि पर स्थित हो तथा सूर्य एवं चंद्र कर्क राशि पर हों, तब नासिक में कुम्भ होता है।
जिस समय सूर्य तुला राशि पर स्थित हो और गुरु वृश्चिक राशि पर हो, तब उज्जैन में कुम्भ पर्व मनाया जाता है।
------------------------इतिहास-----------------------------
उत्तर भारत के मध्य में स्थित "प्रयाग" ने हज़ारों वर्षों का सफर कर लोगों को ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कला, धर्म और संस्कृति की अमूल्य शिक्षा दी.. और, आज इस प्रयाग को इलाहाबाद कहते हैं।
मुग़ल शासक और बाबर नामक लुटेरे का पोता..... अकबर ने लगभग 1583 में...... अपने बाप-दादाओ का अनुकरण करते हुए..... इसका नाम बदल कर इलाहाबाद कर दिया.... जो कि, एक अरबी शब्द है... और, जिसका अर्थ होता है..... अल्लाह द्वारा बसाया गया शहर।
इसीलिए.... इसे हम हिन्दू सनातन धर्मियों द्वारा इसे प्रयाग कहना ही उचित होगा, क्योंकि यह हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
हालाँकि.... मुग़ल काल में बहुत से ऐतिहासिक मंदिरों को तोड़कर उनका अस्तित्व मिटा दिया गया.. परन्तु , प्रयाग में हिंदुओं के बहुत सारे प्राचीन मंदिर और तीर्थ है।
संगम तट पर जहां कुम्भ मेले का आयोजन होता है, वहीं यहां भारद्वाज ऋषि का प्राचीन आश्रम भी है.. जिसे विष्णु की नगरी भी कहा जाता है और यहीं पर भगवान ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ किया था।
माना जाता है पवित्र गंगा और यमुना के मिलन स्थल के पास आर्यों ने प्रयाग तीर्थ की स्थापना की थी... और, अर्द्ध या आधा कुम्भ, हर छह वर्षों में संगम के तट पर आयोजित किया जाता है।
------------ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुम्भ का पर्व 4 प्रकार से आयोजित किया जाता है :
1. कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।
" पद्मिनी नायके मेषे कुम्भ राशि गते गुरोः । गंगा द्वारे भवेद योगः कुम्भ नामा तथोत्तमाः।। "
2. मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुम्भ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है।
" मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ । अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके ।। "
एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुम्भ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
3. सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है।
" सिंह राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । गोदावर्या भवेत कुम्भों जायते खलु मुक्तिदः ।। "
4. सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है।
" मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । उज्जियन्यां भवेत कुम्भः सदामुक्ति प्रदायकः ।। "
इति कुम्भ कथा....!
इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष में इस पर्व का आयोजन होता ह.. और, मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है।
इसमें प्रयाग के संगम तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है... और, इस मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है... क्योंकि ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि.....राक्षसों और देवताओं में जब अमृत के लिए लड़ाई हो रही थी.... तब भगवान विष्णु ने एक 'मोहिनी' का रूप लिया और राक्षसों से अमृत को जब्त कर लिया... और, भगवान विष्णु ने गरुड़ को अमृत पारित कर दिया, तथा अंत में राक्षसों और गरुड़ के संघर्ष में कीमती अमृत की कुछ बूंदें इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गई।
तब से प्रत्येक 12 साल में इन सभी स्थानों में 'कुम्भ मेला' आयोजित किया जाता है।
----------------------कुम्भ का योग-----------------------------
कुम्भ बारह-बारह वर्ष के अन्तर से चार मुख्य तीर्थों में लगने वाला स्नान-दान का ग्रहयोग है। इसके चार स्थल प्रयाग, हरिद्वार, नासिक-पंचवटी और अवन्तिका (उज्जैन) हैं। कुम्भ योग ग्रहों की निम्न स्थिति के अनुसार बनता है-
जब सूर्य एवं चंद्र मकर राशि में होते हैं और अमावस्या होती है तथा मेष अथवा वृषभ के बृहस्पति होते हैं तो प्रयाग में कुम्भ महापर्व का योग होता है। इस अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करना सहस्रों अश्वमेध यज्ञों, सैकड़ों वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने से भी अधिक पुण्य प्रदान करता है। कुम्भ के इस अवसर पर तीर्थ यात्रियों को मुख्य दो लाभ होते हैं- गंगा स्नान तथा सन्त समागम।
जिस समय गुरु कुम्भ राशि पर और सूर्य मेष राशि पर हो, तब हरिद्वार में कुम्भ पर्व होता है।
जब गुरु सिंह राशि पर स्थित हो तथा सूर्य एवं चंद्र कर्क राशि पर हों, तब नासिक में कुम्भ होता है।
जिस समय सूर्य तुला राशि पर स्थित हो और गुरु वृश्चिक राशि पर हो, तब उज्जैन में कुम्भ पर्व मनाया जाता है।
------------------------इतिहास-----------------------------
उत्तर भारत के मध्य में स्थित "प्रयाग" ने हज़ारों वर्षों का सफर कर लोगों को ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कला, धर्म और संस्कृति की अमूल्य शिक्षा दी.. और, आज इस प्रयाग को इलाहाबाद कहते हैं।
मुग़ल शासक और बाबर नामक लुटेरे का पोता..... अकबर ने लगभग 1583 में...... अपने बाप-दादाओ का अनुकरण करते हुए..... इसका नाम बदल कर इलाहाबाद कर दिया.... जो कि, एक अरबी शब्द है... और, जिसका अर्थ होता है..... अल्लाह द्वारा बसाया गया शहर।
इसीलिए.... इसे हम हिन्दू सनातन धर्मियों द्वारा इसे प्रयाग कहना ही उचित होगा, क्योंकि यह हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ स्थल है।
हालाँकि.... मुग़ल काल में बहुत से ऐतिहासिक मंदिरों को तोड़कर उनका अस्तित्व मिटा दिया गया.. परन्तु , प्रयाग में हिंदुओं के बहुत सारे प्राचीन मंदिर और तीर्थ है।
संगम तट पर जहां कुम्भ मेले का आयोजन होता है, वहीं यहां भारद्वाज ऋषि का प्राचीन आश्रम भी है.. जिसे विष्णु की नगरी भी कहा जाता है और यहीं पर भगवान ब्रह्मा ने प्रथम यज्ञ किया था।
माना जाता है पवित्र गंगा और यमुना के मिलन स्थल के पास आर्यों ने प्रयाग तीर्थ की स्थापना की थी... और, अर्द्ध या आधा कुम्भ, हर छह वर्षों में संगम के तट पर आयोजित किया जाता है।
------------ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुम्भ का पर्व 4 प्रकार से आयोजित किया जाता है :
1. कुम्भ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुम्भ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है।
" पद्मिनी नायके मेषे कुम्भ राशि गते गुरोः । गंगा द्वारे भवेद योगः कुम्भ नामा तथोत्तमाः।। "
2. मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुम्भ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है।
" मेष राशि गते जीवे मकरे चन्द्र भास्करौ । अमावस्या तदा योगः कुम्भख्यस्तीर्थ नायके ।। "
एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होनें पर कुम्भ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
3. सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है।
" सिंह राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । गोदावर्या भवेत कुम्भों जायते खलु मुक्तिदः ।। "
4. सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है।
" मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशौ बृहस्पतौ । उज्जियन्यां भवेत कुम्भः सदामुक्ति प्रदायकः ।। "
इति कुम्भ कथा....!
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