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रविवार, अगस्त 16

हिन्दू शब्द का अर्थ

भाई जिनकी हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा भीअसंदिग्ध है, ज्ञान और जानकारी के अभाव मे हिन्दूशब्द को मुसलमानी गाली समझने के कारण अपनीही पहचान को बदलने की तथ्य परे वकालत करते हैं। मैंजानता हूँ कि ऐसा कहने वालो का तर्क यही है किभारतीय वांगमय मे हिन्दू शब्द प्राप्त नहीं है और यहशब्द हमें मुसलमानों ने गाली के रूप मे उपहार दिया हैऔर हिन्दू वस्तुतः आर्य है। परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा कहनेवालों मे अधिकतर वे सज्जन होते हैं जिन्होंने स्वयं नसंस्कृत साहित्य का ही गूढ अदध्ययन किया और नही व्याकरण का, ऐसे मे वेद शास्त्र दुर्धर हो जानास्वाभाविक ही हो जाता है। . हिन्दू शब्द वास्तवमे कोई अरबी या फारसी गाली नहीं वरन वैदिकसंस्कृत का व्याकरण के आधार पर ही लौकिकरूपान्तरण है और वस्तुतः वैदिक शब्द सिंधु से बना है।संस्कृत मे प्रत्येक शब्द की उत्पत्ति के पीछे एकविज्ञान है, जिसे शब्द व्युत्पत्ति कहते हैं। जैसे-"पत्नात त्रायते सा पत्नी" वैदिक व्याकरण मे शब्दउत्पत्ति का आधार ध्वनि विज्ञान (नादविज्ञान) है, ध्वनि उत्पत्ति, उद्गम, आवृत्ति, ऊर्जाआदि के आधार पर ध्वनि परिवर्तन से समानार्थी वनए शब्दों की उत्पत्ति होती है, जैसे सरित(नदी)शब्द की उत्पत्ति हरित शब्द से हुई है। "हरितो नरह्यॉ"( अथर्ववेद 20.30.4) की व्याख्या मे निघंटु मेस्पष्ट है "सरितों हरितो भवन्ति"॥ वैदिक व्याकरणके संदर्भ में निघंटु का निर्देश (नियम) है कि "स" कईस्थानों पर "ह" ध्वनि में परिवर्तित हो जाता है। इसप्रकार अन्य स्थानों मे भी "स" को "ह" व "ह" को"स" लिखा गया है। . सरस्वती को हरस्वती- "तंममर्तुदुच्छुना हरस्वती" (ऋग. 2।23।6), श्री कोह्री- "ह्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ" आदि-आदि॥इसी प्रकार हिन्दू शब्द वैदिक सिंधु शब्द कीउत्पत्ति है क्योंकि सिंधु शब्द से हिंदुओं का सम्बोधनविदेशी आरंभ नहीं है जैसा कि इतिहास मे बताने काप्रयास होता है वरन वैदिक सम्बोधन है। "नेतासिंधूनाम" (ऋग 7.5.2), "सिन्धोर्गभोसिविद्दुताम् पुष्पम्"(अथर्व 19.44.5) फारसी मे हिन्दूशब्द का अर्थ काफिर चोर कालान्तर में किया गयाहै, ऐसा नहीं कि हिन्दू फारसी का मूल शब्द इसीभाव में है। फारसी में "स" के स्थान पर "ह" प्रचलन मेंआ गया, संभवतः संस्कृत व्याकरण के उपरोक्त नियमने फारसी में नियमित स्थान बना लिया होगा।भाषाविज्ञान जानने वाले लोग जानते हैं कि"इंडो-यूरोपियन"परिवार की सभी भाषाओं कीउत्पत्ति संस्कृत से ही मानी जाती है अथवा संस्कृतके किसी पूर्व प्रारूप से! वास्तव में फारसी में हिन्दूका भ्रष्ट अर्थ घृणा के आधार पर काफी बाद मेंकिया गया जैसे कि यहूदियों के लिए कुरान में कईजगह काफिर, दोज़ख़ी जैसे शब्द प्रयुक्त हुए हैं।फारसी मे हिन्दू शब्द का ऐसा ही अर्थ "गयास-उल-लुगत" शब्दकोश के रचनाकार मौलाना गयासुद्दीनकी देन है। इसी तरह राम और देव जैसे संस्कृत शब्दोंका अन्य शब्दकोशों मे एकदम उल्टा अर्थ लिखा है।राम का अर्थ कई स्थानों पर चोर भी किया गयाहै। क्या हमारे लिए राम के अर्थ बादल जाएंगे? हिन्दूशब्द मुसलमानों की अपमानपूर्ण देन है कहना नितांतअनभिज्ञता है, यह शब्द मुसलमान धर्म के आने से बहुतपहले से ही सम्मानपूर्ण तरीके से हमारे लिए प्रयोगहोता रहा है। मुसलमानों से काफी समय पूर्व भारतआने वाले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रावृत्तान्त मे भारत के लिए हिंदुस्थान शब्द प्रयोगकिया है। प्राचीन शब्दकोशों जैसे रामकोश,मेदिनीकोश, अद्भुतकोष, शब्दकल्पद्रुम मे भी हिन्दूशब्द प्राप्त होता है,- "हिन्दुहिन्दूश्चहिंदव:" (मेदिनी कोश) प्राचीन ग्रन्थ बृहस्पति आगममें हिन्दू शब्द को व्यापक अर्थ में हिमालय व इन्दुसागर (हिन्द महासागर) के परिक्षेत्र से परिभाषितकिया गया है- हिमालयात् समारंभ्य यावत् इन्दुसरोवरम्। तद्देव निर्मितम् देशम् हिंदुस्थानम् प्रचक्षते॥अर्थात, उत्तर में हिमालय से आरम्भ कर के दक्षिण मेंइन्दु सागर (हिन्द महासागर) तक का जो क्षेत्र है उसदेव निर्मित देश को हिंदुस्थान कहते हैं। . वास्तव मेंआर्य शब्द हिन्दू जाति का विशेषण है (जिसका अर्थश्रेष्ठ होता है) और वेदों पुराणों में इसी अर्थ मेप्रयुक्त हुआ है, हिन्दू वीरों वीरांगनाओं ने भी स्वयंको आर्य-पुत्र या आर्य-पत्नी कह के संबोधित कियाहै आर्य नहीं। क्योंकि स्वयं के लिए विशेषण यासम्मानसूचक शब्द का प्रयोग भारतीय परंपरा नहींरही है। अतः हिन्दू शब्द ही अधिक समीचीन व संगतहै। इससे भीअधिक महत्वपूर्ण है कि आज आर्य या हिन्दू शब्द कीबहस के अनौचित्य को समझना क्योंकि आज हमेंपढ़ाया जाने वाला मैकाले सोच का भ्रष्ट इतिहासभारतीय गौरव को शर्मसार करने के लिए प्रयासरतहै॥ इस संकीर्ण प्रयास के प्रतिरोध में आज यह लेखसमर्पित है। आज हिन्दू शब्द ही सम्पूर्ण विश्व मेंहमारी पहचान है, हमारे ज्ञान गौरव प्राचीनताऔर हमारी अमर संस्कृति की पहचान है..., "अतःगर्व से कहो हम हिन्दू हैं" . (लेख का आधारभारतीय धर्मग्रन्थ व स्व. माधवाचार्य जी कीपुस्तक क्यों द्वारा प्रदत्त जानकारी है)

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