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गुरुवार, मार्च 31

स्त्री जन्म से ही अपवित्र है यह बात सीता जी से किसने कहा ?

--}**स्त्री जन्म से ही अपवित्र है यह बात सीता जी से किसने कहा ? कौन सा धर्म पालन कर वो पवित्र और पूजनीय हो जाती हैं ?आइए जानते हैं विस्तार से:----
~~ चित्रकूट में बसकर श्री रघुनाथजी ने बहुत से चरित्र किए,
~~ जो कानों को अमृत के समान (प्रिय) हैं। फिर (कुछ समय पश्चात) श्री रामजी ने
~~ मन में ऐसा अनुमान किया कि मुझे सब लोग जान गए हैं, इससे (यहाँ) बड़ी भीड़ हो जाएगी
~~ (इसलिए) सब मुनियों से विदा लेकर सीताजी सहित दोनों भाई चले!
~~ जब प्रभु अत्रिजी के आश्रम में गए, तो उनका आगमन सुनते ही महामुनि हर्षित हो गए॥
~~ श्री रामजी की छवि देखकर मुनि के नेत्र शीतल हो गए।
~~ तब वे उनको आदरपूर्वक अपने आश्रम में ले आए। पूजन करके सुंदर वचन कहकर
~~ मुनि ने मूल और फल दिए, जो प्रभु के मन को बहुत रुचे॥मुनि ने विनती करके और फिर सिर नवाकर, हाथ जोड़कर कहा-
~~ हे नाथ! मेरी बुद्धि आपके चरण कमलों को कभी न छोड़े॥
~~ फिर परम शीलवती और विनम्र श्री सीताजी अनसूयाजी (अत्रिजी की पत्नी) के चरण पकड़कर उनसे मिलीं।
~~ ऋषि पत्नी के मन में बड़ा सुख हुआ। उन्होंने आशीष देकर सीताजी को पास बैठा लिया॥
~~ और उन्हें ऐसे दिव्य वस्त्र और आभूषण पहनाए, जो नित्य-नए निर्मल और सुहावने बने रहते हैं।
~~ फिर ऋषि पत्नी उनके बहाने मधुर और कोमल वाणी से स्त्रियों के कुछ धर्म बखान कर कहने लगीं॥
~~ हे राजकुमारी! सुनिए- माता, पिता, भाई सभी हित करने वाले हैं, परन्तु ये सब एक सीमा तक ही (सुख) देने वाले हैं,
~~ परन्तु हे जानकी! पति तो (मोक्ष रूप) असीम (सुख) देने वाला है।
~~ वह स्त्री अधम है, जो ऐसे पति की सेवा नहीं करती॥धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री- इन चारों की विपत्ति के समय ही परीक्षा होती है।
~~ वृद्ध, रोगी, मूर्ख, निर्धन, अंधा, बहरा, क्रोधी और अत्यन्त ही दीन-॥
~~ ऐसे भी पति का अपमान करने से स्त्री यमपुर में भाँति-भाँति के दुःख पाती है।
~~ शरीर, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए, बस यह एक ही धर्म है,
~~ एक ही व्रत है और एक ही नियम है॥और जो स्त्री मौका न मिलने से या भयवश
~~ पतिव्रता बनी रहती है, जगत में उसे अधम स्त्री जानना।
~~ पति को धोखा देने वाली जो स्त्री पराए पति से रति करती है, वह तो सौ कल्प तक नरक में पड़ी रहती है॥
~~ जो पति के प्रतिकूल चलती है, वह जहाँ भी जाकर जन्म लेती है, वहीं जवानी पाकर (भरी जवानी में) विधवा हो जाती है॥
~~ स्त्री जन्म से ही अपवित्र है, किन्तु पति की सेवा करके वह अनायास ही शुभ गति प्राप्त कर लेती है।
~~ (पतिव्रत धर्म के कारण ही) आज भी 'तुलसीजी' भगवान को प्रिय हैं और चारों वेद उनका यश गाते हैं॥
~~ हे सीता! सुनो, तुम्हारा तो नाम ही ले-लेकर स्त्रियाँ पतिव्रत धर्म का पालन करेंगी।
~~ तुम्हें तो श्री रामजी प्राणों के समान प्रिय हैं, यह (पतिव्रत धर्म की) कथा तो मैंने संसार के हित के लिए कही है॥
~~ आगे की मनभावन कथा जानने के लिए कृपया अगले पोस्ट का इंतज़ार करें और दिल से !! जय श्री राम !!
~~~~~~~~~~~~~~~~~!! जय श्री राम !!~~~~~~~~~~~~~~~

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