क्या आप जानते हैं कि..... नवरात्र का मतलब क्या
होता है.... और, नवरात्र का वैज्ञानिक आधार
क्या है ...?????
दरअसल.... नवरात्र शब्द से "नव अहोरात्रों (विशेष
रात्रियां) का बोध" होता है.... और, इस समय
शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है.....
क्योंकि... "रात्रि" शब्द सिद्धि का प्रतीक माना
जाता है...।
जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि....भारत के
प्राचीन ऋषि-मुनियों ने.... रात्रि को दिन की
अपेक्षा अधिक महत्व दिया है...... यही कारण है
कि... दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र
आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है...।
यदि , रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता,... तो,
ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा
जाता..... परन्तु , दिलचस्प है कि... "नवरात्र" के
दिन.... "नवदिन" नहीं कहे जाते हैं....।
लेकिन... नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व को समझने से
पहले... हम थोडा नवरात्र को समझ लेते हैं....!
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान
बनाया है..... मतलब कि.... विक्रम संवत के पहले दिन
अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली
तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक...।
और, इसी प्रकार इसके ठीक छह मास पश्चात् ......
आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी
अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक नवरात्र
मनाया जाता है.. ।
लेकिन, फिर भी ..... सिद्धि और साधना की दृष्टि
से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना
गया है.... और, इन नवरात्रों में लोग अपनी
आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए
अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन,
योग साधना आदि करते हैं...... !
यहाँ तक कि... कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात
पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या
बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त
करने का प्रयास करते हैं।
नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का
समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए
एकत्रित होता है...... और, जो उपासक इन शक्ति
पीठों पर नहीं पहुंच पाते...... वे अपने निवास स्थल पर
ही शक्ति का आह्वान करते हैं।
हालाँकि.... आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा
रात्रि में नहीं..... बल्कि, पुरोहित को दिन में ही
बुलाकर संपन्न करा देते हैं।
यहाँ तक कि....सामान्य भक्त ही नहीं.... अपितु ,
पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी
रात जागना नहीं चाहते... और, ना ही कोई आलस्य
को त्यागना चाहता है।
आज कल.. . बहुत कम उपासक ही आलस्य को त्याग
कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति
की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते
देखे जाते हैं...!
जबकि... मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत
सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने
और समझाने का प्रयत्न किया.... और, अब तो यह
एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि.... रात्रि
में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं........
और, हमारे ऋषि - मुनि आज से कितने ही हजारों-
लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों
को जान चुके थे.....।
जैसा कि.... आपने भी देखा ही होगा कि..... अगर
दिन में आवाज दी जाए, तो वह दूर तक नहीं जाती है
, किंतु यदि रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत
दूर तक जाती है.....।
इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा..... एक
वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि..... दिन में सूर्य की
किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे
बढ़ने से रोक देती हैं....।
रेडियो इस बात का जीता - जागता उदाहरण है...
जहाँ आपने खुद भी महसूस किया होगा कि.... कम
शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात
सुनना मुश्किल होता है ........जबकि सूर्यास्त के
बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से
सुना जा सकता है।
इसका... वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि..... सूर्य की
किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार
रोकती हैं ..... ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप की
विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती
है......!
इसीलिए ऋषि - मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन
की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है.....।
मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर - दूर
तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है।
यही... रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है...... जो इस
वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में
संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने
शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं ,
उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि ,
उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक
विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।
हालाँकि..... आजकल नवरात्र को नवरात्रि.... भी
कहा जाता है .... परन्तु , संस्कृत व्याकरण के अनुसार
"नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण" है .... क्योंकि, नौ
रात्रियों का समाहार.... अर्थात, समूह होने और
द्वन्द सामास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप
""नवरात्र"" में ही शुद्ध है।
नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह कि....
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल
की चार संधियाँ हैं... जिनमे से मार्च व सितंबर माह
में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य
नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की
सर्वाधिक संभावना होती है.... और, ऋतु संधियों में
अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं.... अत: उस
समय स्वस्थ रहने के लिए... तथा शरीर को शुद्ध रखने
के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने
के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम
""नवरात्र"" है।
अब सवाल है कि.... नवरात्र में.... नौ दिन या नौ
रात को गिना जाना चाहिए....????
तो.... मैं यहाँ बता दूँ कि.....अमावस्या की रात से
अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत
नियम चलने से नौ रात यानी ""नवरात्र"" नाम
सार्थक है। चूँकि.... यहाँ रात गिनते हैं.... इसलिए इसे
नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है...।
रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों
वाला कहा गया है.. और, इसके भीतर निवास करने
वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है...।
इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य
स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे
साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए
नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया
जाता है... और, इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के
लिए नौ दिन.... नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
हालाँकि.... शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन,
सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं
....किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई
करने के लिए.... हर छ: माह के अंतर से सफाई
अभियान चलाया जाता है.... जिसमे , सात्विक
आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि,
साफ सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही
उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द
होता है... क्योंकि, स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर
की शक्ति का स्थायी निवास होता है!
नवरात्र में नौ देवियाँ या नव देवी इस प्रकार हैं.....
नौ दिन यानि हिन्दी माह चैत्र और आश्विन के
शुक्ल पक्ष की पड़वा.... अर्थात पहली तिथि से
नौवी तिथि तक प्रत्येक दिन की एक देवी..... मतलब
नौ द्वार वाले दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी
शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं-
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दीदात्री
अथ नवरात्र कथा...
जय माँ भवानी...
होता है.... और, नवरात्र का वैज्ञानिक आधार
क्या है ...?????
दरअसल.... नवरात्र शब्द से "नव अहोरात्रों (विशेष
रात्रियां) का बोध" होता है.... और, इस समय
शक्ति के नव रूपों की उपासना की जाती है.....
क्योंकि... "रात्रि" शब्द सिद्धि का प्रतीक माना
जाता है...।
जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि....भारत के
प्राचीन ऋषि-मुनियों ने.... रात्रि को दिन की
अपेक्षा अधिक महत्व दिया है...... यही कारण है
कि... दीपावली, होलिका, शिवरात्रि और नवरात्र
आदि उत्सवों को रात में ही मनाने की परंपरा है...।
यदि , रात्रि का कोई विशेष रहस्य न होता,... तो,
ऐसे उत्सवों को रात्रि न कह कर दिन ही कहा
जाता..... परन्तु , दिलचस्प है कि... "नवरात्र" के
दिन.... "नवदिन" नहीं कहे जाते हैं....।
लेकिन... नवरात्र के वैज्ञानिक महत्व को समझने से
पहले... हम थोडा नवरात्र को समझ लेते हैं....!
मनीषियों ने वर्ष में दो बार नवरात्रों का विधान
बनाया है..... मतलब कि.... विक्रम संवत के पहले दिन
अर्थात चैत्र मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पहली
तिथि) से नौ दिन अर्थात नवमी तक...।
और, इसी प्रकार इसके ठीक छह मास पश्चात् ......
आश्विन मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से महानवमी
अर्थात विजयादशमी के एक दिन पूर्व तक नवरात्र
मनाया जाता है.. ।
लेकिन, फिर भी ..... सिद्धि और साधना की दृष्टि
से शारदीय नवरात्रों को ज्यादा महत्वपूर्ण माना
गया है.... और, इन नवरात्रों में लोग अपनी
आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए
अनेक प्रकार के व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन,
योग साधना आदि करते हैं...... !
यहाँ तक कि... कुछ साधक इन रात्रियों में पूरी रात
पद्मासन या सिद्धासन में बैठकर आंतरिक त्राटक या
बीज मंत्रों के जाप द्वारा विशेष सिद्धियां प्राप्त
करने का प्रयास करते हैं।
नवरात्रों में शक्ति के 51 पीठों पर भक्तों का
समुदाय बड़े उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए
एकत्रित होता है...... और, जो उपासक इन शक्ति
पीठों पर नहीं पहुंच पाते...... वे अपने निवास स्थल पर
ही शक्ति का आह्वान करते हैं।
हालाँकि.... आजकल अधिकांश उपासक शक्ति पूजा
रात्रि में नहीं..... बल्कि, पुरोहित को दिन में ही
बुलाकर संपन्न करा देते हैं।
यहाँ तक कि....सामान्य भक्त ही नहीं.... अपितु ,
पंडित और साधु-महात्मा भी अब नवरात्रों में पूरी
रात जागना नहीं चाहते... और, ना ही कोई आलस्य
को त्यागना चाहता है।
आज कल.. . बहुत कम उपासक ही आलस्य को त्याग
कर आत्मशक्ति, मानसिक शक्ति और यौगिक शक्ति
की प्राप्ति के लिए रात्रि के समय का उपयोग करते
देखे जाते हैं...!
जबकि... मनीषियों ने रात्रि के महत्व को अत्यंत
सूक्ष्मता के साथ वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में समझने
और समझाने का प्रयत्न किया.... और, अब तो यह
एक सर्वमान्य वैज्ञानिक तथ्य भी है कि.... रात्रि
में प्रकृति के बहुत सारे अवरोध खत्म हो जाते हैं........
और, हमारे ऋषि - मुनि आज से कितने ही हजारों-
लाखों वर्ष पूर्व ही प्रकृति के इन वैज्ञानिक रहस्यों
को जान चुके थे.....।
जैसा कि.... आपने भी देखा ही होगा कि..... अगर
दिन में आवाज दी जाए, तो वह दूर तक नहीं जाती है
, किंतु यदि रात्रि को आवाज दी जाए तो वह बहुत
दूर तक जाती है.....।
इसके पीछे दिन के कोलाहल के अलावा..... एक
वैज्ञानिक तथ्य यह भी है कि..... दिन में सूर्य की
किरणें आवाज की तरंगों और रेडियो तरंगों को आगे
बढ़ने से रोक देती हैं....।
रेडियो इस बात का जीता - जागता उदाहरण है...
जहाँ आपने खुद भी महसूस किया होगा कि.... कम
शक्ति के रेडियो स्टेशनों को दिन में पकड़ना अर्थात
सुनना मुश्किल होता है ........जबकि सूर्यास्त के
बाद छोटे से छोटा रेडियो स्टेशन भी आसानी से
सुना जा सकता है।
इसका... वैज्ञानिक सिद्धांत यह है कि..... सूर्य की
किरणें दिन के समय रेडियो तरंगों को जिस प्रकार
रोकती हैं ..... ठीक उसी प्रकार मंत्र जाप की
विचार तरंगों में भी दिन के समय रुकावट पड़ती
है......!
इसीलिए ऋषि - मुनियों ने रात्रि का महत्व दिन
की अपेक्षा बहुत अधिक बताया है.....।
मंदिरों में घंटे और शंख की आवाज के कंपन से दूर - दूर
तक वातावरण कीटाणुओं से रहित हो जाता है।
यही... रात्रि का वैज्ञानिक रहस्य है...... जो इस
वैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए रात्रियों में
संकल्प और उच्च अवधारणा के साथ अपने
शक्तिशाली विचार तरंगों को वायुमंडल में भेजते हैं ,
उनकी कार्यसिद्धि अर्थात मनोकामना सिद्धि ,
उनके शुभ संकल्प के अनुसार उचित समय और ठीक
विधि के अनुसार करने पर अवश्य होती है।
हालाँकि..... आजकल नवरात्र को नवरात्रि.... भी
कहा जाता है .... परन्तु , संस्कृत व्याकरण के अनुसार
"नवरात्रि कहना त्रुटिपूर्ण" है .... क्योंकि, नौ
रात्रियों का समाहार.... अर्थात, समूह होने और
द्वन्द सामास होने के कारण यह शब्द पुलिंग रूप
""नवरात्र"" में ही शुद्ध है।
नवरात्र के पीछे का वैज्ञानिक आधार यह कि....
पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल
की चार संधियाँ हैं... जिनमे से मार्च व सितंबर माह
में पड़ने वाली गोल संधियों में साल के दो मुख्य
नवरात्र पड़ते हैं। इस समय रोगाणु आक्रमण की
सर्वाधिक संभावना होती है.... और, ऋतु संधियों में
अक्सर शारीरिक बीमारियाँ बढ़ती हैं.... अत: उस
समय स्वस्थ रहने के लिए... तथा शरीर को शुद्ध रखने
के लिए और तनमन को निर्मल और पूर्णत: स्वस्थ रखने
के लिए की जाने वाली प्रक्रिया का नाम
""नवरात्र"" है।
अब सवाल है कि.... नवरात्र में.... नौ दिन या नौ
रात को गिना जाना चाहिए....????
तो.... मैं यहाँ बता दूँ कि.....अमावस्या की रात से
अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत
नियम चलने से नौ रात यानी ""नवरात्र"" नाम
सार्थक है। चूँकि.... यहाँ रात गिनते हैं.... इसलिए इसे
नवरात्र यानि नौ रातों का समूह कहा जाता है...।
रूपक के द्वारा हमारे शरीर को नौ मुख्य द्वारों
वाला कहा गया है.. और, इसके भीतर निवास करने
वाली जीवनी शक्ति का नाम ही दुर्गा देवी है...।
इन मुख्य इन्द्रियों के अनुशासन, स्वच्छ्ता, तारतम्य
स्थापित करने के प्रतीक रूप में, शरीर तंत्र को पूरे
साल के लिए सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए
नौ द्वारों की शुद्धि का पर्व नौ दिन मनाया
जाता है... और, इनको व्यक्तिगत रूप से महत्व देने के
लिए नौ दिन.... नौ दुर्गाओं के लिए कहे जाते हैं।
हालाँकि.... शरीर को सुचारू रखने के लिए विरेचन,
सफाई या शुद्धि प्रतिदिन तो हम करते ही हैं
....किन्तु अंग-प्रत्यंगों की पूरी तरह से भीतरी सफाई
करने के लिए.... हर छ: माह के अंतर से सफाई
अभियान चलाया जाता है.... जिसमे , सात्विक
आहार के व्रत का पालन करने से शरीर की शुध्दि,
साफ सुथरे शरीर में शुद्ध बुद्धि, उत्तम विचारों से ही
उत्तम कर्म, कर्मों से सच्चरित्रता और क्रमश: मन शुध्द
होता है... क्योंकि, स्वच्छ मन मंदिर में ही तो ईश्वर
की शक्ति का स्थायी निवास होता है!
नवरात्र में नौ देवियाँ या नव देवी इस प्रकार हैं.....
नौ दिन यानि हिन्दी माह चैत्र और आश्विन के
शुक्ल पक्ष की पड़वा.... अर्थात पहली तिथि से
नौवी तिथि तक प्रत्येक दिन की एक देवी..... मतलब
नौ द्वार वाले दुर्ग के भीतर रहने वाली जीवनी
शक्ति रूपी दुर्गा के नौ रूप हैं-
1. शैलपुत्री
2. ब्रह्मचारिणी
3. चंद्रघंटा
4. कूष्माण्डा
5. स्कन्दमाता
6. कात्यायनी
7. कालरात्रि
8. महागौरी
9. सिध्दीदात्री
अथ नवरात्र कथा...
जय माँ भवानी...
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