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मंगलवार, अगस्त 11

महामद (मोहम्मद) भविष्य पुराण के अनुसार एक पिशाच ??

इस्लाम के प्रचारक हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराने के लिए तरह तरह के हथकण्डे अपनाते रहते हैं , कभी सेकुलर बन कर गंगा जमुनी तहजीब की वकालत करने लगते हैं , कभी इस्लाम और हिन्दू धर्म में समानता साबित करने लगते हैं , लेकिन इनका असली उद्देश्य हिन्दुओं को गुमराह करके इस्लाम के चंगुल में फँसाना ही होता है , क्योंकि अधिकांश हिन्दू इस्लाम से अनभिज्ञ और हिन्दू धर्म से उदासीन होते हैं , इस समय इस्लाम के प्रचारकों में जाकिर नायक का नाम सबसे ऊपर है। जो एक "सलफ़ी जिहादी" गिरोह से सम्बंधित है। यह गिरोह जिहाद में आतंकवाद को उचित मानता है। जाकिर नायक का पूरा नाम "जाकिर अब्दुल करीम नायक " है ,इसका जन्म 18 अक्टूबर सन 1965 में हुआ था। इसने मेडिकल डाक्टर की ट्रेनिंग छोड़ कर इस्लाम का प्रचार करना शुरू कर दिया और दुबई (UAE ) में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (Islamic Research Foundation ) नामकी एक संस्था बनाई , यही नहीं जाकिर "पीस टीवी (Peace TV ) नामका निजी चैनल भी चलाता है , जिसका मुख्यालय भी दुबई में है। जाकिर अक्सर अपने चैनल पर चर्चा के लिए दूसरे धर्म के लोगों को आमंत्रित करता है , फिर उन्हीं के धर्म ग्रन्थ से कुछ ऐसे अंश पेश करता है , जिनसे साबित हो सके कि उनके धर्मग्रन्थ में भी मुहम्मद , अल्लाह और रसूल का उल्लेख है,जिससे भोले भले लोग मुसलमान बन जाएँ।
जाकिर नायक ने ऐसी ही एक चाल 20 फरवरी 2014 को चली , जिसमे हिंदुओं को भ्रमित करने के लिए दावा कर दिया कि हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ " भविष्य पुराण " में मुहम्मद का वर्णन है और उनको अवतार बताया गया है। जाकिर नायक ने बड़ी मक्कारी से हिन्दुओं को धोखा देने के लिए यह साबित करने का प्रयास किया है कि भविष्य पुराण में मुहम्मद का वर्णन एक अवतार के रूप में किया गया है , इसलिए हिन्दू मुहम्मद को एक अवतार मान कर सम्मान दें और उसके धर्म इस्लाम को स्वीकार कर लें। हो सकता है कि कुछ मूर्ख जाकिर जाल में फंस कर जाकिर की बात को सही मान बैठे हों , लेकिन भविष्य पुराण में मुहम्मद को " महामद " त्रिपुरासुर का अवतार , धर्म दूषक और पिशाच धर्म का प्रवर्तक बताया गया है। यही नहीं भविष्य पुराण में इस्लाम को पिशाच धर्म और मुसलमानों को " लिंगोच्छेदी "यानि लिंग कटवाने वाले कहा गया है। भविष्य पुराण के जिस भाग में महामद वर्णन है ,वह मूल संस्कृत और उसके हिंदी अनुवाद के साथ दिया जा रहा है। ताकि लोगों का यह भ्रम दूर हो जाए की भविष्य पुराण में महामद को एक अवतार के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
भविष्य पुराण में महामद ( मुहम्मद ) एक पैशाच धर्म स्थापक -भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक . 1 -31
श्री सूत उवाच-
1. शालिवाहन वंशे च राजानो दश चाभवन्। राज्यं पञ्चशताब्दं च कृत्वा लोकान्तरं ययुः। ( श्री सूत जी ने कहा - राजा शालिवाहन के वंश में दस राजा हुए थे। उन सबने पञ्च सौ वर्ष पर्यन्त राज्य शासन किया था और अंत में दुसरे लोक में चले गए थे।)
2. मर्य्यादा क्रमतो लीना जाता भूमण्डले तदा। भूपतिर्दशमो यो वै भोजराज इति स्मृतः।( उस समय में इस भूमण्डल में क्रम से मर्यादा लीन हो गयी थी। जो इनमे दशम राजा हुआ है वह भोजराज नाम से प्रसिद्द हुआ।)
3. दृष्ट्वा प्रक्षीणमर्य्यादां बली दिग्विजयं ययौ। सेनया दशसाहस्र्या कालिदासेन संयुतः।( मर्यादा क्षीण होते देखकर परम बलवान उसने(राजा ने) दिग्विजय करने को गमन किया था। सेना में दस सहस्त्र सैनिक के साथ कविश्रेष्ठ कालिदास थे।)
4. तथान्यैर्ब्राह्मणैः सार्द्धं सिन्धुपारमुपाययौ जित्वा गान्धारजान् म्लेच्छान् काश्मीरान् आरवान् शठान्।( तथा अन्य ब्राह्मणों के सहित वह सिन्धु नदी के पार प्राप्त हुआ(अर्थात पार किया) था। और उसने गान्धारराज, मलेच्छ, काश्मीर, नारव और शठों को दिग्विजय में जीता।)
5. तेषां प्राप्य महाकोषं दण्डयोग्यानकारयत् एतस्मिन्नन्तरे म्लेच्छ आचार्येण समन्वितः।( उनका बहुत सा कोष प्राप्त करके उन सबको योग्य दण्ड दिया था। इसी समय काल में मलेच्छों का एक आचार्य हुआ।)
6. महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः नृपश्चैव महादेवं मरुस्थलनिवासिनम्।(महामद शिष्यों की अपने शाखाओं में बहुत प्रसिद्द था। नृप(राजा) ने मरुस्थल में निवास करने वाले महादेव को नमन किया।)
7. गंगाजलैश्च सस्नाप्य पञ्चगव्य समन्वितैः। चन्दनादिभिरभ्यर्च्य तुष्टाव मनसा हरम् ।(पञ्चजगव्य से युक्त गंगा के जल से स्नान कराके तथा चन्दन आदि से अभ्याचना(भक्तिपूर्वकभाव से याचना) करके हर(महादेव) की स्तुति की ।)
भोजराज उवाच-
8. नमस्ते गिरिजानाथ मरुस्थलनिवासिने। त्रिपुरासुरनाशाय बहुमायाप्रवर्त्तिने।(भोजराज ने कहा - हे गिरिजा नाथ ! मरुस्थल में निवास करने वाले, बहुत सी माया में प्रवत होने त्रिपुरासुर नाशक वाले हैं।)
9. म्लेच्छैर्गुप्ताय शुद्धाय सच्चिदानन्दरूपिणे। त्वं मां हि किंकरं विद्धि शरणार्थमुपागतम् ।(मलेच्छों से गुप्त, शुद्ध और सच्चिदानन्द रूपी, मैं आपकी विधिपूर्वक शरण में आकर प्रार्थना करता हूँ।)
सूत उवाच-
10. इति श्रुत्वा स्तवं देवः शब्दमाह नृपाय तम्। गन्तव्यं भोजराजेन महाकालेश्वरस्थले ।( सूत जी ने कहा - महादेव ने प्रकार स्तुति सुन राजा से ये शब्द कहे "हे भोजराज आपको महाकालेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।")
11. म्लेच्छैस्सुदूषिता भूमिर्वाहीका नाम विश्रुता। आर्य्यधर्मो हि नैवात्र वाहीके देशदारुणे ।(यह वाह्हीक भूमि मलेच्छों द्वारा दूषित हो चुकी है। इस दारुण(हिंसक) प्रदेश में आर्य(श्रेष्ठ)-धर्म नहीं है।)
12. बभूवात्र महामायी योऽसौ दग्धो मया पुरा। त्रिपुरो बलिदैत्येन प्रेषितः पुनरागतः ।(जिस महामायावी राक्षस को मैंने पहले माया नगरी में भेज दिया था(अर्थात नष्ट किया था) वह त्रिपुर दैत्य कलि के आदेश पर फिर से यहाँ आ गया है।)
13. अयोनिः स वरो मत्तः प्राप्तवान् दैत्यवर्द्धनः। महामद इति ख्यातः पैशाच कृति तत्परः ।(वह मुझसे वरदान प्राप्त अयोनिज(pestle, मूसल, मूलहीन) हैं। एवं दैत्य समाज की वृद्धि कर रहा है। महामद के नाम से प्रसिद्द और पैशाचिक कार्यों के लिए तत्पर है।)
14. नागन्तव्यं त्वया भूप पैशाचे देशधूर्तके। मत् प्रसादेन भूपाल तव शुद्धिः प्रजायते ।( हे भूप(भोजराज) ! आपको मानवता रहित धूर्त देश में नहीं जाना चाहिए। मेरी प्रसाद(कृपा) से तुम विशुद्ध राजा हो।)
15. इति श्रुत्वा नृपश्चैव स्वदेशान् पुनरागमत्। महामदश्च तैः सार्द्धं सिन्धुतीरमुपाययौ ।(यह सुनने पर राजा ने स्वदेश को वापस प्रस्थान किया। और महामद उनके पीछे सिन्धु नदी के तीर(तट) पर आ गया।)
16. उवाच भूपतिं प्रेम्णा मायामदविशारदः। तव देवो महाराज मम दासत्वमागतः ।( मायामद माया के ज्ञाता(महामद) ने राजा से झूठ कहा - हे महाराज ! आपके देव ने मेरा दासत्व स्वीकार किया है अतः वे मेरे दास हो गए हैं।)
17. ममोच्छिष्टं संभुजीयाद्याथात त्पश्य भो नृप। इति श्रुत्वा तथा परं विस्मयमागतः ।( हे नृप(भोजराज) ! इसलिए आज से आप मुझे ईश्वर के संभुज(बराबर) उच्छिष्ट(पूज्य) मानिए, ये सुन कर राजा विस्मय को प्राप्त भ्रमित हुआ।)
18. म्लेच्छधर्मे मतिश्चासीत्तस्य भूपस्य दारुणे, तच्छृत्वा कालिदासस्तु रुषा प्राह महामदम्।( राजा की दारुण(अहिंसा) मलेच्छ धर्म में रूचि में वृद्धि हुई। यह राजा के श्रवण करते देख, कालिदास ने क्रोध में भरकर महामद से कहा।)
19. माया ते निर्मिता धूर्त नृपम्हन हेतवे हनिष्यामि दुराचारं वाहीकं पुरुषाधमम्।( हे धूर्त ! तूने नृप(राजधर्म) से मोह न करने हेतु माया रची है। दुष्ट आचार वाले पुरुषों में अधम वाहीक को मैं तेरा नाश कर दूंगा।)
20. इत्युक्त्वा स द्विजः श्रीमान् नवार्ण जप तत्परः जप्त्वा दशसहस्रं च तद्दशांशं जुहाव सः।( यह कह श्रीमान ब्राह्मण(कालिदास) ने नर्वाण मंत्र में तत्परता की। नर्वाण मंत्र का दश सहस्त्र जाप किया और उसके दशाश जप किया।)
21. भस्म भूत्वा स मायावी म्लेच्छदेवत्वमागतः, भयभीतस्तु तच्छिष्या देशं वाहीकमाययुः।( वह मायावी भस्म होकर मलेच्छ देवत्व अर्थात मृत्यु को प्राप्त हुआ। भयभीत होकर उसके शिष्य वाहीक देश में आ गए।)
22. गृहीत्वा स्वगुरोर्भस्म मदहीनत्वमागतम्, स्थापितं तैश्च भूमध्ये तत्रोषुर्मदतत्पराः।( उन्होंने अपने गुरु(महामद) की भस्म को ग्रहण कर लिया और और वे मदहीन को गए। भूमध्य में उस भस्म को स्थापित कर दिया। और वे वहां पर ही बस गए।)
23. मदहीनं पुरं जातं तेषां तीर्थं समं स्मृतम्, रात्रौ स देवरूपश्च बहुमायाविशारदः।( वह मदहीन पुर हो गया और उनके तीर्थ के सामान माना जाने लगा। उस बहुमाया के विद्वान(महामद) ने रात्रि में देवरूप धारण किया।)
24. पैशाचं देहमास्थाय भोजराजं हि सोऽब्रवीत् आर्य्यधर्म्मो हि ते राजन् सर्ब धर्मोतमः स्मृतः ।( आत्मा रूप में पैशाच देह को धारण कर भोजराज से कहा। हे राजन(भोजराज) !मेरा यह आर्य समस्त धर्मों में अतिउत्तम है।
25. ईशाज्ञया करिष्यामि पैशाचं धर्मदारुणम् लिंगच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः।(अपने ईश की आज्ञा से पैशाच दारुण धर्म मैं करूँगा। मेरे लोग लिंगछेदी(खतना किये हुए), शिखा(चोटी) रहित, दाढ़ी रखने वाले दूषक होंगे।)
26. उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम विना कौलं च पशवस्तेषां भक्ष्या मता मम।( ऊंचे स्वर में अलापने वाले और सर्वभक्षी होंगे। हलाल(ईश्वर का नाम लेकर) किये बिना सभी पशु उनके खाने योग्य न होगा।)
27. मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति तस्मात् मुसलवन्तो हि आतयो धर्मदूषकाः।( मूसल से उनका संस्कार किया जायेगा। और मूसलवान हो इन धर्म दूषकों की कई जातियां होंगी।)
28. इति पैशाच धर्म श्च भविष्यति मयाकृतः इत्युक्त्वा प्रययौ देवः स राजा गेहमाययौ।( इस प्रकार भविष्य में मेरे(मायावी महामद) द्वारा किया हुआ यह पैशाच धर्म होगा। यह कहकर वह वह (महामद) चला गया और राजा अपने स्थान पर वापस आ गया।)
29. त्रिवर्णे स्थापिता वाणी सांस्कृती स्वर्गदायिनी,शूद्रेषु प्राकृती भाषा स्थापिता तेन धीमता।( उसने तीनों वर्णों में स्वर्ग प्रदान करने वाली सांस्कृतिक भाषा को स्थापित किया और विस्तार किया। शुद्र वर्ण हेतु वहां प्राकृत भाषा के का ज्ञान स्थापित/विस्तार किया(ताकि शिक्षा और कौशल का आदान प्रदान आसान हो)।)
30. पञ्चाशब्दकालं तु राज्यं कृत्वा दिवं गतः, स्थापिता तेन मर्यादा सर्वदेवोपमानिनी।( राजा ने पचास वर्ष काल पर्यंत राज(शासन) करते हुए दिव्य गति(परलोक) को प्राप्त हुआ। तब सभी देवों की मानी जाने वाली मर्यादा स्थापित हुई।)
31. आर्य्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यंविन्ध्यहिमालयोः आर्य्य वर्णाः स्थितास्तत्र विन्ध्यान्ते वर्णसंकराः।( विन्ध्य और हिमाचल के मध्य में आर्यावर्त परम पुण्य भूमि है अर्थात सबसे उत्तम(पवित्र) भूमि है, आर्य(श्रेष्ठ) वर्ण यहाँ स्थित हुए। और विन्ध्य के अंत में अन्य कई वर्ण मिश्रित हुए।)
भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व, खण्ड 3, अध्याय 3 श्लोक . 1 -31
भविष्य पुराण के इन सभी श्लोकों को एक साथ पढ़कर महामद (मौहम्मद)के बारे में स्पष्ट जानकारी प्राप्त हो जाती है कि भविष्य पुराण में महामद के बारे में क्या लिखा है और क्या नही। अब जाकिर नायक बताये कि भविष्य पुराण के पैशाच धर्म के संस्थापक ही मुहम्मद साहब है तो वह हिन्दुओं के अवतार कैसे हुए ?

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

Right bro ye bhavishwani me hai maine padha hai.........


ab bat isa masiha ki Sabse starting kalug ke best god..............


hindu dharm mtlb gyan ka bhandar.....jiase bhavish jana ho wo dharm mtlb sabse sanatan........ved vyas sabse Behtar rushi........

ye bhi likha hai ye pishach dharm kalantar ke bad apne ap hi kht ho jayega ye ho bhi raha hai.........

Aisa dharm aj tak nhi dekha maine to har bat pe hinsa